चित्तौड़गढ़ जिले का एक छोटा सा कस्बा जो भारत के इतिहास में अपनी अगल पहचान रखता है।
आज आपको बड़ी सादड़ी की विशेषताओं का ज्ञान करवाता हूं।
बड़ीसादड़ी की अपनी पहचान महाराणा प्रताप द्वारा अकबर द्वारा किए गए विश्व प्रसिद्ध युद्ध हल्दीघाटी में महाराणा प्रताप का छत्र धारण कर युद्ध के मैदान से राणा प्रताप को सुरक्षित भेजनें एंव स्वंय का बलिदान देने वाले झाला मानसिंह उर्फ झाला बीदा के कारण हैं।
विश्व प्रसिद्ध हल्दीघाटी का युद्ध 21जून 1576को हल्दीघाटी नामक स्थान पर लड़ा गया था । इसी युद्ध में राणा प्रताप का छत्र झाला मानसिंह ने धारण किया था। इस कारण बड़ी सादड़ी को झाला मान की नगरी के नाम से भी जाना जाता है।
बड़ी सादड़ी की एक और पहचान सीतामाता वन्य जीव अभयारण्य के कारण भी है। जो 323वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। ये अपने प्रसिद्ध उडन गिलहरी के कारण विश्व प्रसिद्ध हैं। यंहा के अन्य दर्शनीय स्थलों में भागी वाबडी गर्म ठंडे पानी के स्त्रोत यंहा बहने वाली प्रसिद्ध करमोई नदी हैं।
यंहा पर अनेक प्रकार के वन्य जीव विचरण करते हैं। मां सीता का अन्तिम समय में भूमि में प्रवेश करने की लोक कथा इसी सीता माता वन्य जीव अभयारण्य से जुड़ी हुई है।
आज आपको बड़ी सादड़ी की विशेषताओं का ज्ञान करवाता हूं।
बड़ीसादड़ी की अपनी पहचान महाराणा प्रताप द्वारा अकबर द्वारा किए गए विश्व प्रसिद्ध युद्ध हल्दीघाटी में महाराणा प्रताप का छत्र धारण कर युद्ध के मैदान से राणा प्रताप को सुरक्षित भेजनें एंव स्वंय का बलिदान देने वाले झाला मानसिंह उर्फ झाला बीदा के कारण हैं।
विश्व प्रसिद्ध हल्दीघाटी का युद्ध 21जून 1576को हल्दीघाटी नामक स्थान पर लड़ा गया था । इसी युद्ध में राणा प्रताप का छत्र झाला मानसिंह ने धारण किया था। इस कारण बड़ी सादड़ी को झाला मान की नगरी के नाम से भी जाना जाता है।
बड़ी सादड़ी की एक और पहचान सीतामाता वन्य जीव अभयारण्य के कारण भी है। जो 323वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। ये अपने प्रसिद्ध उडन गिलहरी के कारण विश्व प्रसिद्ध हैं। यंहा के अन्य दर्शनीय स्थलों में भागी वाबडी गर्म ठंडे पानी के स्त्रोत यंहा बहने वाली प्रसिद्ध करमोई नदी हैं।
यंहा पर अनेक प्रकार के वन्य जीव विचरण करते हैं। मां सीता का अन्तिम समय में भूमि में प्रवेश करने की लोक कथा इसी सीता माता वन्य जीव अभयारण्य से जुड़ी हुई है।

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