Sunday, 28 April 2019

नीमच बड़ीसादड़ी रेलवे लाइन जनता की उम्मीदों की किरण

बदलती बड़ी सादड़ी का आइना बनती बड़ी सादड़ी रेलवे लाइन-:
चित्तौड़गढ़ जिले की एक तहसील के रूप में बड़ी सादड़ी को आवागमन की दृष्टि से अत्यंत पिछड़ा हुआ क्षेत्र माना जाता है। 
लोग कहते हैं । यदि कोई व्यक्ति शाम के छः बजे बाद बड़ी सादड़ी आने की सोचें तो यह बहुत ही मुश्किल है। क्योंकि आवागमन के साधनों की कमी से बड़ी सादड़ी की जनता हमेशा जुझती रहीं हैं। 
ऐसे में मावली से बड़ी सादड़ी होते हुए भविष्य में चलने वाली नीमच बड़ी सादड़ी रेलवे लाइन जनता के लिए निश्चित रूप से  लाभदायक होगीं।
इस क्षैत्र के लोग को निश्चित रूप से रोजगार सृजन के अवसर उपलब्ध होगें।
बडीसादडी के इस रेलवे लाइन से नीमच तक जुड़ने पर  बड़ीसादड़ी का सीधा जुड़ाव मध्य भारत तक होगा। लोग नीमच से भोपाल इन्दौर होते हुए मध्य भारत से जुडेंगे। वहीं
मावली वाया उदयपुर होकर लोग अहमदाबाद होते हुए दक्षिण भारत से जुड़ सकेंगे।
बड़ीसादड़ी रेलवे लाइन सैन्यबल की दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती हैं।
मध्य भारत की तमाम सैनिक छावनियों का सीधा जुड़ाव भारत पाकिस्तान बोर्डर से होगा ।
मावली से मारवाड़ जंक्शन तक ट्रेनों के आवागमन से सैन्य साजोसामान को जल्द सैनिकों तक पहुंचाने  मेंं यह रेलवे स्टेशन महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा। इस नये रेलवे लाइन को बिछाने में सम्पूर्ण खर्च का वहन केन्द्र सरकार द्वारा किया जा रहा है। बड़ी सादड़ी से नीमच तक बनने वाले रेलवे लाइन के लिए कुल 475करोड़ रूपये खर्च होंगे।
इन दोनों शहरों के मध्य पांच रेलवे स्टेशन बनाए जाएंगे। तथा उक्त कार्य को पूर्ण करने का समय 2022निश्चित किया गया है।



इस रेलेवे लाइन के निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सासंद सीपी जोशी के अथक प्रयासों को भी भूला नहीं जा सकता हैं। 
बडीसादडी के वे समस्त स्वंयसेवी संगठन एंव अनगिनत व्यक्तित्व जिन्होंने इस कार्य में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की हैं। बधाई के पात्र हैं।
 पढ़ते रहिए अपना बड़ीसादड़ी ब्लॉग पोस्ट

दिनेश वैष्णव- शिक्षा में क्रांतिकारी परिवर्तक


  • -:कोशिश करने वालो की कभी हार नही होती लहरों से डर.कर नौका पार नही होती।

 ठीक कुछ ऐसा ही कर दिखाया हैं। शिक्षक दिनेश वैष्णव ने
 आम लोगों में बनी सरकारी विद्यालयों एवं सरकारी शिक्षकों की धारणा को बदलने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं। अजमेर जिले के केकड़ी ब्लाॅक के राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय मण्डा में कार्यरत शिक्षक दिनेश वैष्णव
जिनको उक्त विद्यालय में आए हुए मात्र कुछ माह हुए हैं। लेकिन उन्होंने पुरे विद्यालय की तस्वीर बदल कर रख दी है।
दिनेश वैष्णव ने जब इस विद्यालय में कार्यग्रहण किया उस समय विद्यालय की स्थिति बेहद खराब थी। जिसे देखकर शिक्षक वैष्णव का मन उद्वेलित हुआ। तथा उन्होंने इसे सम्पूर्ण रूप से बदलने का बीड़ा उठाया।
शिक्षक वैष्णव ने जनसहयोग से विद्यालय की पुरी तस्वीर ही बदल कर रख दी। नये रंग रोगन भारत दर्शन गलियारा विभिन्न महीनों के नाम विभिन्न आकृतियां विद्यालय की दीवारों पर उकेरी गई जिससे विद्यालय के स्वरुप में बढ़ा बदलाव आया।

शिक्षक वैष्णव की कार्यशैली व विद्यालय के प्रति समर्पण की भावना को देखकर विद्यालय में ही कार्यरत शिक्षिका सुनिता ने 500रूपये प्रतिमाह विद्यालय को देने का निर्णय लिया हैं।  पेश है। मण्ड़ा विद्यालय की बदलती तस्वीर

शिक्षक वैष्णव ने विद्यालय में अपनी बच्ची के जन्मदिन पर चित्रों से सजे एक कक्ष को बच्चों की शिक्षा हेतु अनुपम भेंट के रूप में विद्यालय को दिया।
शिक्षक वैष्णव को उक्त कार्य हेतु नवोदय क्रांति समिति द्वारा सम्मानित किया जा चूका है।
वैष्णव अपनी तरफ  अन्य विद्यालयों में भी बदलाव के जनक बन रहें हैं। तथा उन शिक्षकों को प्रकाश में लाने का कार्य भी कर रहे हैं। जो शिक्षा एंव विद्यार्थियों के हितों के लिए जाने जाते हैं। शिक्षक वैष्णव ने अन्य जिलों के समर्पित शिक्षकों की टीम को खोजने का कार्य भी किया है। तथा ऐसे समर्पित शिक्षकों के विद्यालयों में भौतिक संसाधनों की कमी को पुरा करने के लिए भी मुंबई की नामी  हस्तियां आगे आ रहीं हैं।
सचमुच में शिक्षक वैष्णव सभी शिक्षकों के लिए आदर्श बन रहें हैं।
यदि इसी प्रकार अन्य शिक्षक भी विद्यालय के लिए समर्पित भाव से काम करें तो सचमुच में सरकारी विद्यालयों की तस्वीर बदल सकती है।
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Monday, 22 April 2019

पृथ्वी को कैसे बचाएं

आज 22अप्रेल विश्व पृथ्वी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
सभी व्यक्ति सोशल मीडिया पर पृथ्वी को बचाने के लिए अपनी पोस्ट शेयर करतें हैं।
हमारी पृथ्वी जिस पर अनेक प्रकार के जीवों का वास है। पृथ्वी के बारे में कहा जाता है। कि वह अपना बीज कभी नहीं खोती है।
कविवर सुमित्रानंदन पंत की पंक्तियां पृथ्वी के संदर्भ में
मैंने छुटपन में छिपकर पैसे बोये थे,
सोचा था, पैसों के प्यारे पेड़ उगेंगे,
रुपयों की कलदार मधुर फसलें खनकेंगी
और फूल-फलकर मैं मोटा सेठ बनूँगा
पर बंजर धरती में एक न अंकुर फूटा
बन्ध्या मिट्टी ने न एक भी पैसा उगला
सपने जाने कहाँ मिटे, कब धूल हो गये
मैं हताश हो बाट जोहता रहा दिनों तक
बाल-कल्पना के अपलर पाँवडे बिछाकर
मैं अबोध था, मैंने गलत बीज बोये थे,
ममता को रोपा था, तृष्णा को सींचा था।
अर्द्धशती हहराती निकल गयी है तबसे
कितने ही मधु पतझर बीत गये अनजाने
ग्रीष्म तपे, वर्षा झूली, शरदें मुसकाई
सी-सी कर हेमन्त कँपे, तरु झरे, खिले वन
और जब फिर से गाढ़ी, ऊदी लालसा लिये
गहरे, कजरारे बादल बरसे धरती पर
मैंने कौतूहल-वश आँगन के कोने की
गीली तह यों ही उँगली से सहलाकर
बीज सेम के दबा दिये मिट्टी के नीचे
भू के अंचल में मणि-माणिक बाँध दिये हो
मैं फिर भूल गया इस छोटी-सी घटना को
और बात भी क्या थी याद जिसे रखता मन
किन्तु, एक दिन जब मैं सन्ध्या को आँगन में
टहल रहा था, तब सहसा, मैंने देखा
उसे हर्ष-विमूढ़ हो उठा मैं विस्मय से
देखा-आँगन के कोने में कई नवागत
छोटे-छोटे छाता ताने खड़े हुए हैं
छाता कहूँ कि विजय पताकाएँ जीवन की
या हथेलियाँ खोले थे वे नन्हीं प्यारी
जो भी हो, वे हरे-हरे उल्लास से भरे
पंख मारकर उड़ने को उत्सुक लगते थे
डिम्ब तोड़कर निकले चिड़ियों के बच्चों से
निर्निमेष, क्षण भर, मैं उनको रहा देखता
सहसा मुझे स्मरण हो आया,कुछ दिन पहले
बीज सेम के मैंने रोपे थे आँगन में,
और उन्हीं से बौने पौधो की यह पलटन
मेरी आँखों के सम्मुख अब खड़ी गर्व से,
नन्हें नाटे पैर पटक, बढ़ती जाती है।
तब से उनको रहा देखता धीरे-धीरे
अनगिनती पत्तों से लद, भर गयी झाड़ियाँ,
हरे-भरे टंग गये कई मखमली चँदोवे
बेलें फैल गयी बल खा, आँगन में लहरा,
और सहारा लेकर बाड़े की पट्टी का
हरे-हरे सौ झरने फूट पड़े ऊपर को
मैं अवाक रह गया-वंश कैसे बढ़ता है
छोटे तारों-से छितरे, फूलों के छीटे
झागों-से लिपटे लहरों श्यामल लतरों पर
सुन्दर लगते थे, मावस के हँसमुख नभ-से,
चोटी के मोती-से, आँचल के बूटों-से।
ओह, समय पर उनमें कितनी फ़लियाँ फूटी
कितनी सारी फ़लियाँ, कितनी प्यारी फलियाँ
पतली चौड़ी फलियाँ! उफ उनकी क्या गिनती
लम्बी-लम्बी अँगुलियों – सी नन्हीं-नन्हीं
तलवारों-सी पन्ने के प्यारे हारों-सी,
झूठ न समझे चन्द्र कलाओं-सी नित बढ़तीं,
सच्चे मोती की लड़ियों-सी, ढेर-ढेर खिल
झुण्ड-झुण्ड झिलमिलकर कचपचिया तारों-सी
आह इतनी फलियाँ टूटीं, जाड़ों भर खाई,
सुबह शाम वे घर-घर पकीं, पड़ोस पास के
जाने-अनजाने सब लोगों में बँटबाई
बंधु-बांधवों, मित्रों, अभ्यागत, मँगतों ने
जी भर-भर दिन-रात महुल्ले भर ने खाई
कितनी सारी फ़लियाँ, कितनी प्यारी फ़लियाँ
यह धरती कितना देती है! धरती माता
कितना देती है अपने प्यारे पुत्रों को
नहीं समझ पाया था मैं उसके महत्व को
बचपन में स्वार्थ, लोभ-वश पैसे बोकर
रत्न प्रसविनी है वसुधा, अब समझ सका हूँ
इसमें सच्ची समता के दाने बोने हैं
इसमें जन की क्षमता के दाने बोने हैं
इसमें मानव-ममता के दाने बोने हैं
जिससे उगल सके फिर धूल सुनहली फसलें
मानवता की- जीवन श्रम से हँसे दिशाएँ-
हम जैसा बोयेंगे वैसा ही पायेंगे
लेकिन आज के समय में जब वर्तमान पीढ़ी भयानक विनाश की ओर बढ़ रहीं हैं ‌। ऐसे पृथ्वी की रक्षा के लिए संपूर्ण विश्व को जागरूक होना होगा। 
पृथ्वी को बचाने के लिए हमें सबसे पहले वृक्षों को बचाना होगा। वृक्षों को बचाकर हम जल ,वायु जैसे मानव जीवन के आवश्यक तत्व संरक्षित कर सकते हैं। 
पृथ्वी को बचाने के लिए दुसरा महत्वपूर्ण क़दम उठाना होगा कि
विकास हो लेकिन पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचा कर ताकि समावेशी विकास की धारणा जीवंत रहें ‌।
हमें लगातार बढ़ते हुए प्रदूषण को कम करना होगा। जिससे वैश्विक ऊष्मन को कम किया जा सके।
 पृथ्वी को बचाने के लिए विश्व के सभी नागरिकों को जागरूक बनाना होगा।

Friday, 19 April 2019

प्लास्टिक का ढे़र बनती बड़ी सादड़ी सब्जी मंडी

बड़ी सादड़ी नगर में स्थित सब्जी मंडी वैसे तो सब्जियों की आवक और जावक के लिए जानी जाती हैं।  यह सब्जी मंडी अपनी सब्जियों को निकटवर्ती कस्बों से लेकर उदयपुर मंदसौर-नीमच आदि शहरों को सब्जी सप्लाई करती है। 
लेकिन आजकल यह मंडी प्लास्टिक के अत्यधिक उपयोग के कारण गंदगी का शिकार होती जा रहीं हैं। जिसका प्रमुख कारण यहां के व्यापारियों एवं किसानों दोनों के द्वारा प्लास्टिक के अत्यधिक प्रयोग करना हैं।

 राज्य सरकार  द्वारा प्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिए जाने के बावजूद बड़ीसादड़ी सब्जी मंडी में धड़ल्ले से किसानों एवं खरीददारों द्वारा
सब्जी की पैकिंग के लिए बेहिसाब से प्लास्टिक का प्रयोग कर रहे हैं। और व्यापारियों द्वारा भी प्लास्टिक की थैलियों में बंद माल को खरीदना मजबूरी बनता जा रहा है।
क्योकि किसान अपनी सब्जियों को सीधे प्लास्टिक के बैग में ही पैक करके लाते हैं।

इस प्रकार किसानों से खरीदें हुए प्लास्टिक के बैग को व्यापारियों द्वारा मंडी परिसर में ही फैंक दिया जाता हैं। जिसका सेवन पशुओं विशेष रूप से गायों के द्वारा किया जा रहा है। जिससे उनकी मौत हो सकती है। 
अनेक व्यापारियों द्वारा कस्बें में अपना माल खाली करने के बाद  प्लास्टिक को खुले में फैंक दिया जाता है। 
या जला दिया जाता है। जिससे पर्यावरण में जहरीली गैसों को बढ़ावा मिल रहा है। प्रशासन ने की बार अभियान चला कर व्यापारियों से प्लास्टिक को जब्त करने का काम किया है। 
लेकिन प्रशासन सब्जी मंडी में प्लास्टिक के इस प्रकार के प्रयोग  पर चूप्पी साधे हुए हैं।जो उसकी विफलता का जीता जागता उदाहरण है। 
यदि इस प्रकार सभी प्लास्टिक का उपयोग करतें रहें तो  आने वाले समय में कैंसर जैसी भंयकर बिमारियों से आने वाली पीढ़ी को जुझना पड़ेगा।
किसानों को अपने माल की पैकिंग के लिए अन्य विकल्पों की तलाश करनी चाहिए। तथा सब्जी मंडी के विक्रेताओं को भी प्लास्टिक पर बैन लगाना चाहिए। ताकि हम सभी मिलकर पर्यावरण के संरक्षण के साथ आने वाली पीढ़ी को एक सुंदर प्रकृति उपहार स्वरूप दे सकें।
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Thursday, 18 April 2019

स्पीक मैके का आयोजन-स्वामी विवेकानंद माॅडल स्कूल बड़ी सादड़ी

भारतीय संस्कृति की पहचान  पुरे विश्व में सबसे अलग संस्कृति के रूप में हैं। भारतीय संस्कृति को जीवंत बनाए रखने में भारतीय कलाकारों यहां के निवासियों व भारत में प्राचीन जनजातियों का विशेष योगदान माना जाता है।
किसी भी राष्ट्र की पहचान उसकी संस्कृति  से होती है।
भारतीय संस्कृति अपने आदर्श वाक्य वसुधैव कुटुंबकम् के कारण से जानी जाती हैं।
इसी भारतीय संस्कृति को जीवंत बनाए रखने में अनेक भारतीय कलाकारों का अहम योगदान माना जाता है।
प्राचीन भारत में अनेक प्रकार के नृत्य प्रचलित थें। कुछ नृत्य समय के साथ बदलते गए और कुछ हमेशा के लिए समाप्त हो चूके हैं। या समाप्ति की ओर हैं। लेकिन भारतीय  लोक कलाकारों ने आज भी अनेक नृत्यों को विश्व स्तरीय पहचान दिलाई हुए हैं।
चित्तौड़गढ़ के बड़ी सादड़ी स्थित स्वामी विवेकानंद माॅडल स्कूल में स्पिक मैके की वर्ल्ड डांस डे सीरीज के अंतर्गत क्लासिकल डांस मणिपुरी की अंतरराष्ट्रीय कलाकार पद्मश्री दर्शना झावेरी का  अपने पांच साथियों के साथ मणिपुरी डांस के कार्यक्रम की दिनांक 18 अप्रैल को पहली प्रस्तुति स्वामी विवेकानंद राजकीय माडल स्कूल बडी सादडी मे दिन मे 1.00 बजे  दी विद्यालय के प्रिंसिपल एवं अन्य गणमान्य अतिथियों कलाकारों का स्वागत माल्यार्पण के द्वारा किया
 गया अतिथियों ने कहा कि हमारी सांस्कृतिक विरासत को बचाने के लिऐ स्पिक मेके के प्रयास प्रशंसनीय है ।
इन छोटे-छोटे प्रयासों  से हम अपनी विरासत को संजोए रख सकते हैं।
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Monday, 15 April 2019

बड़ी सादड़ी के स्वच्छता दूत-दीपक प्रजापत

स्वच्छता दूत दीपक प्रजापत
स्वचछभारत-श्रेष्ठ भारत


 स्वच्छता को सेवा का दर्जा प्राप्त है। भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी स्वच्छता को बहुत अधिक महत्व दिया करतें थें। वे स्वंय सफाई करते थें।  महात्मा गांधी के इसी प्रेरणादायक काम से प्रभावित होकर भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 2अक्टूबंर 2014को महात्मा गांधी के जन्मदिन पर सम्पूर्ण भारत को स्वच्छ बनाने के लिए स्वच्छ भारत मिशन को आरम्भ किया गया था।
उन्होंने समस्त भारत के चर्चित हस्तियों एंव आम नागरिकों से इस पुनित काम में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने का आह्वान किया।

प्रधानमंत्री के इसी स्वच्छ भारत मिशन से प्रभावित होकर बड़ी सादड़ी के एक नवयुवक ने बड़ी सादड़ी के मशहूर तालाब सूर्य सागर के घाटों की सफाई करने का बीड़ा उठाया है।
दीपक प्रजापत प्रत्येक रविवार को सूर्य सागर तालाब के घाटों की सफाई करते हैं।
इस काम को कर वे बेहद खुश हैं। उनका कहना है कि इस काम को कर वे एक आम नागरिक कि तरह राष्ट्र के निर्माण में अपना योगदान दे रहे हैं।
दीपक प्रजापत का मानना है। कि प्रत्येक व्यक्ति सीमा पर जाकर लड़कर ही  अपनी देश भक्ति साबित नहीं कर सकता है।
यदि हम छोटे-छोटे काम करना शुरू कर दें। तो यही सच्ची राष्ट्र सेवा होगी।
यदि कहीं बिजली का बल्ब दिन में जल रहा हो। उसे बंद कर  खुले नल सेबहते हुए  पानी को रोककर एवं अपने आस पास के  वातावरण को स्वच्छ रखकर हम सच्चे देशभक्त साबित हो सकतें हैं।
हम सभी मिलकर भी भारत वर्ष को स्वच्छ बनाने में अपना अहम योगदान दे सकते हैं। हम सिर्फ दीपक प्रजापत की तरह देश सेवा विस्तार स्वच्छता का जज्बा रखने वाले युवा साथियों  से प्रेरणा लेनी होगी। 
तभी हम अपने देश की एक सुंदर तस्वीर भारत वर्ष के सामने रख सकेंगे। 
आइए  हम सब मिलकर भारत को स्वच्छ बनाने में अपना योगदान दें। 
जय हिन्द जय भारत वन्देमातरम
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Thursday, 11 April 2019

प्लास्टिक पर बैन क्यों हैं। जरूरी

विभिन्न प्रकार के संश्लेषित व अर्धश्लेषित कार्बन पदार्थों के योग से प्लास्टिक का निर्माण होता है।
आज प्लास्टिक हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गया है। आज कल बाजार से हम हर छोटी-बड़ी चीजें खरीदतें समय उनके साथ प्लास्टिक की थैली अवश्य लेते हैं।
ऐसे में हमें यह जानकारी होना अत्यंत आवश्यक है कि प्लास्टिक को सड़ने में लगभग 20 वर्ष का समय लगता है।
हजारों पशुओं की मौत प्लास्टिक के सेवन से होती हैं।  हमारे द्वारा उपयोग  में लाकर फैंका गया प्लास्टिक जानवर सेवन करते हैं। जो उनकी पाचन थैली में चिपक  जाती है। जिससे उसकी पाचन शक्ति प्रभावित होती है। तथा धीरे धीरे वह मौत की और बढ़ता है।
भारत सहित पुरे विश्व में ई कचरा एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। कहीं कहीं ई-कचरे के ढेर देखें जा सकते है ।
विश्व के बड़े बड़े देश प्लास्टिक के कम प्रयोग को बढ़ावा देने के प्रयास में लगे हैं।
हमारे देश में भी प्लास्टिक के कम उपयोग हेतु विभिन्न राज्यों की सरकारों ने इस पर प्रतिबंध लगाने का काम किया है। लेकिन अभी तक किए गए प्रयास ना काफी साबित हो रहें हैं।

यदि इसी प्रकार से प्लास्टिक का उपयोग बढ़ता रहा तो लोगों में स्वास्थ्य संबंधी बिमारियों को बढ़ावा मिलेगा।
और सबसे भंयकर बिमारी कैंसर से भी जुझना पड़ता सकता है।
प्लास्टिक को जलाने से  निकलने वाली भंयकर गैसों से वायु मंडल के दूषित होने का खतरा बढ़ रहा है। इन जहरीली गैसों के उत्सर्जन से लाल वर्षा के खतरे की घंटी बज चूकी हैं।
प्लास्टिक के प्रयोग से भूमि प्रदूषण में भी इजाफा होगा क्योंकि प्लास्टिक के विखंडन से भूमि  प्रदूषित होगी।  तथा प्लास्टिक भूमि में जल के रिसाव को रोकने कार्य करता हैं।
जिससे भूमि में जल प्रवेश नहीं कर पाता है। जो जल भूमि में प्रवेश कराता है। वह भी प्लास्टिक के सम्पर्क में आने से दूषित हो जाता है। ऐसे में प्रत्येक नागरिक का यह दायित्व बनता है कि वह प्लास्टिक का कम से कम उपयोग करें।
ज़हां अत्यावश्यक हो वही इसका उपयोग किया जाए।
तथा हाथ थैलों वह टाट कै थैलों का प्रयोग अधिक किया जाए
लोग प्लास्टिक के कम प्रयोग करें इसके लिए भी जागरूक बनाने की आवश्यकता है।
आइए संकल्प लें हम आज से ही प्लास्टिक का कम से कम उपयोग करेगे।
          पुरा विश्व -बनेगा प्लास्टिक मुक्त

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Wednesday, 10 April 2019

वृक्ष क्यों है।आवश्यक

 प्रचीन भारतीय ग्रंथों में वृक्षों को देवता का स्थान प्राप्त था। आज भी भारत के प्रत्येक घर का एक वृक्ष देवता होता हैं। जिसकी लकड़ी काटना व जलाना वर्जित होता हैं।वृक्ष  का सामान्य अर्थ पौधे से लिए जाता हैं। वृक्षों का मानव जीवन में विशेष महत्व हैं। बिना वृक्षों के मानव जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती हैं।
 विश्व में बढ़ती आबादी एंव बढ़ते औद्योगिक  क्षेत्रों की वजह से वन व वन्यजीव के अस्तित्व  को बनाए रखना अत्यंत कठीन होता जा रहा है।
विश्व के विभिन्न देशों में सरकारों द्वारा किए गए प्रयास ना काफी साबित हो रहें हैं।
विचारणीय तथ्य यह है।कि एक और सम्पूर्ण विश्व मेंं पेडों को बचाने की दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रयास किए जारहे हैं।
दुसरी और लोग अज्ञानतावश आज भी आदिवासी समाज द्वारा अपनी अंधी परपंरा की आड़ में जंगलों में आग लगा दी जाती हैं। जिससे अनेक वृक्ष व वन्यजीव इस आग का शिकार बनतें हैं।

  • वृक्षों से हमें शुद्ध प्राणवायु प्राप्त होती हैं।   जो हमारे जीवन का आधार मानी जाती हैं।
  • वृक्ष पृथ्वी की रक्षा कवच का कार्य करते हैं। ये हमें शीतलता प्रदान करते हैं।
  • वृक्ष धरती पर वर्षा करवाने में सहायक होते है। जो मानव जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक माना गया है।
  • वृक्ष वन्य जीवों को संरक्षण प्रदान करते हैं।  एंव वन्य जीवों को प्राकृतिक आवास उपलब्ध करातें हैं। 
  • वृक्ष कार्बन डाइऑक्साइड को सोखने का कार्य करते हैं। जिससे धरती पर वैश्विक तापन में कमी आतीहै।
  • वृक्ष से धरती की सुंदरता बनी रहती हैं। धरती को प्राकृतिक सुंदरता प्रदान करती हैं 
  •       धरती का सौंदर्य वृक्ष हैं।
  •       धरती का गुणगान वृक्ष हैं।
  •        धरती है। बिना वृक्षों के बांझ समान
  •         बचाइए पेड़ और बनाइए धरती को सुंदरवान
  •  जिस प्रकार भारतीय संस्कृति में पेड़ अपना विशेष महत्व रखते हैं। ठीक उसी प्रकार सम्पूर्ण विश्व को बचाने के लिए वृक्षों को बचाना अत्यंत आवश्यक हैं। 

Tuesday, 9 April 2019

स्वामी विवेकानंद माॅडल स्कूल बड़ीसादड़ी

राजस्थान सरकार के सपनें के सपनों को साकार करता बड़ीसादड़ी का यह विद्यालय अपने आप में अनूठा हैं ।
 राजस्थान सरकार द्वारा संचालित इन विद्यालयों में अग्रेंजी माध्यम में शिक्षा प्रदान की जाती हैं।
भारत  के बड़े बड़े शहरों में संचालित कावेंट विद्यालय में जिस प्रकार की शिक्षा प्रदान की जाती हैं। ठीक उसी प्रकार की शिक्षा छोटे गांवों एंव पिछड़े हुए इलाकों की प्रतिभावान छात्र छात्राओं को मिले इस हेतु 2014-2015 से राजस्थान सरकार द्वारा केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से मान्यता प्राप्त  इन विद्यालयों की स्थापना की गई हैं। इन विद्यालयों मेंं प्रत्येक मूलभूत सुविधाओं के विकास में राज्य सरकार द्वारा कोई कोर कसर नहीं रखी गई हैं।
बडीसादडी स्थित स्वामी विवेकानंद माडल विद्यालय   राज्य सरकार के द्वारा सोचे गए सपनें पर खरा उतरता नजर आ रहा हैं।
इस विद्यालय में हर प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध हैं। बच्चों के सम्पूर्ण विकास के लिए खेलकूद उपकरणों सहित विद्यार्थियों की सृजनात्मक को आगें लाने के लिए यंहा पर आर्ट एंड क्राफ्ट कक्ष विद्यार्थियों को आधुनिक विज्ञान एंव तकनीकी से जोड़ने के लिए यहाँ पर विभिन्न संस्थाओ द्वारा विभिन्न प्रकार की कार्य शालाओंं का भी आयोजन किया जाता हैं।
इस विद्यालय की प्रतिभाओं की प्रंशसा स्वयं जिलाधीश महोदय द्वारा भी की जा चूकी हैं।
विभिन्न प्रकार के खेलकूद प्रतियोगिताओं एंव विभिन्न प्रकार की अन्य प्रतियोगिताओं में भी इस विद्यालय की प्रतिभाओं द्वारा अपना लोहा मनवाया जा चूका है।
इन सभी बातों के अलावा यदि इस विद्यालय के विकास में अपना समर्पण देनेवाले गुरु जनों की चर्चा अवश्य की जानी चाहिए।क्योंकि विद्यार्थियों को जीवन की नई दिशा देनेवाले शिक्षक ही होतें हैं। इस विद्यालय के मुखिया श्री आदर्श पालीवाल हर समय विद्यालय के विकास एंव विद्यार्थियों के हितों के लिए समर्पित रहते है।

इस विद्यालय के विकास में यहाँ के शिक्षकों का भी अमूल्य योगदान हैं। 
राज्य सरकार की यहयोजनाएं निश्चित रूप से अत्यंत पिछड़े क्षेत्र में निवास करने वाले विद्यार्थियों के लिए लाभदायक सिद्ध हो रहीं है। इस विद्यालय के छात्र यहाँ से शिक्षा ग्रहण कर देश के उच्च पदों पर आसीन होगें। 
पढ़ते रहिए अपना बडीसादडी


Saturday, 6 April 2019

अनमोल हैं बेटियां

*प्रस्तुत है वो कहानी जो मेरे अंतर्मन को छू गई  🙏🏻।*

शहर के एक अन्तरराष्ट्रीय प्रसिद्धि के विद्यालय के बग़ीचे में तेज़ धूप और गर्मी की परवाह किये बिना, बड़ी लग्न से पेड़ - पौधों की काट छाँट में लगा था कि तभी विद्यालय के चपरासी की आवाज़ सुनाई दी, "गंगादास! तुझे प्रधानाचार्या जी तुरंत बुला रही हैं।"
     गंगादास को आख़िरी के पांँच शब्दों में काफ़ी तेज़ी महसूस हुई और उसे लगा कि कोई महत्त्वपूर्ण बात हुई है जिसकी वज़ह से प्रधानाचार्या जी ने उसे तुरंत ही बुलाया है।
      शीघ्रता से उठा, अपने हाथों को धोकर साफ़ किया और  चल दिया, द्रुत गति से प्रधानाचार्या के कार्यालय की ओर।
       उसे प्रधानाचार्या महोदया के कार्यालय की दूरी मीलों की लग रही थी जो ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही थी। उसकी हृदयगति बढ़ गई थी।  सोच रहा था कि उससे क्या ग़लत हो गया जो आज उसको प्रधानाचार्या महोदया ने  तुरंत ही अपने कार्यालय में आने को कहा।
      वह एक ईमानदार कर्मचारी था और अपने कार्य को पूरी निष्ठा से पूर्ण करता था। पता नहीं क्या ग़लती हो गयी। वह इसी चिंता के साथ प्रधानाचार्या के कार्यालय पहुँचा......
       "मैडम, क्या मैं अंदर आ जाऊँ? आपने मुझे बुलाया था।"
       "हाँ। आओ और यह देखो" प्रधानाचार्या महोदया की आवाज़ में कड़की थी और उनकी उंगली एक पेपर पर इशारा कर रही थी।
       "पढ़ो इसे" प्रधानाचार्या ने आदेश दिया।
       "मैं, मैं, मैडम! मैं तो इंग्लिश पढ़ना नहीं जानता मैडम!" गंगादास ने घबरा कर उत्तर दिया।
     *"मैं आपसे क्षमा चाहता हूँ मैडम यदि कोई गलती हो गयी हो तो।* मैं आपका और विद्यालय का पहले से ही बहुत ऋणी हूँ। क्योंकि आपने मेरी बिटिया को इस विद्यालय में निःशुल्क पढ़ने की इज़ाज़त दी। मुझे कृपया एक और मौक़ा दें मेरी कोई ग़लती हुई है तो सुधारने का। मैं आप का सदैव ऋणी रहूंँगा।" गंगादास बिना रुके घबरा कर बोलता चला जा रहा था।
      उसे प्रधानाचार्या ने टोका "तुम बिना वज़ह अनुमान लगा रहे हो। थोड़ा इंतज़ार करो, मैं तुम्हारी बिटिया की कक्षा-अध्यापिका को बुलाती हूँ।"
      वे पल जब तक उसकी बिटिया की कक्षा-अध्यापिका प्रधानाचार्या के कार्यालय में पहुँची बहुत ही लंबे हो गए थे गंगादास के लिए। सोच रहा था कि क्या उसकी बिटिया से कोई ग़लती हो गयी, कहीं मैडम उसे विद्यालय से निकाल तो नहीं रहीं। उसकी चिंता और बढ़ गयी थी।
      कक्षा-अध्यापिका के पहुँचते ही प्रधानाचार्या महोदया ने कहा, "हमने तुम्हारी बिटिया की प्रतिभा को देखकर और परख कर ही उसे अपने विद्यालय में पढ़ने की अनुमति दी थी। अब ये मैडम इस पेपर में जो लिखा है उसे पढ़कर और हिंदी में तुम्हें सुनाएँगी, ग़ौर से सुनो।"
      कक्षा-अध्यापिका ने पेपर को पढ़ना शुरू करने से पहले बताया, "आज मातृ दिवस था और आज मैंने कक्षा में सभी बच्चों को अपनी अपनी माँ के बारे में एक लेख लिखने को कहा। तुम्हारी बिटिया ने जो लिखा उसे सुनो।"
      उसके बाद कक्षा- अध्यापिका ने पेपर पढ़ना शुरू किया।
      "मैं एक गाँव में रहती थी, एक ऐसा गाँव जहाँ शिक्षा और चिकित्सा की सुविधाओं का आज भी अभाव है। चिकित्सक के अभाव में कितनी ही माँयें दम तोड़ देती हैं बच्चों के जन्म के समय। मेरी माँ भी उनमें से एक थीं। उन्होंने मुझे छुआ भी नहीं कि चल बसीं। मेरे पिता ही वे पहले व्यक्ति थे मेरे परिवार के जिन्होंने मुझे गोद में लिया। पर सच कहूँ तो मेरे परिवार के वे अकेले व्यक्ति थे जिन्होंने मुझे गोद में उठाया था। बाक़ी की नज़र में तो मैं अपनी माँ को खा गई थी। मेरे पिताजी ने मुझे माँ का प्यार दिया। मेरे दादा - दादी चाहते थे कि मेरे पिताजी दुबारा विवाह करके एक पोते को इस दुनिया में लायें ताकि उनका वंश आगे चल सके। परंतु मेरे पिताजी ने उनकी
एक न सुनी और दुबारा विवाह करने से मना कर दिया। इस वज़ह से मेरे दादा - दादीजी ने उनको अपने से अलग कर दिया और पिताजी सब कुछ, ज़मीन, खेती बाड़ी, घर सुविधा आदि छोड़ कर मुझे साथ लेकर शहर चले आये और इसी विद्यालय में माली का कार्य करने लगे। मुझे बहुत ही लाड़ प्यार से बड़ा करने लगे। मेरी ज़रूरतों पर माँ की तरह हर पल उनका ध्यान रहता है।"
    "आज मुझे समझ आता है कि वे क्यों हर उस चीज़ को जो मुझे पसंद थी ये कह कर खाने से मना कर देते थे कि वह उन्हें पसंद नहीं है, क्योंकि वह आख़िरी टुकड़ा होती थी। आज मुझे बड़ा होने पर उनके इस त्याग के महत्त्व पता चला।"
     "मेरे पिता ने अपनी क्षमताओं में मेरी हर प्रकार की सुख - सुविधाओं का ध्यान रखा और मेरे विद्यालय ने उनको यह सबसे बड़ा पुरस्कार दिया जो मुझे यहाँ निःशुल्क पढ़ने की अनुमति मिली। उस दिन मेरे पिता की ख़ुशी का कोई ठिकाना न था।"
     "यदि माँ, प्यार और देखभाल करने का नाम है तो मेरी माँ मेरे पिताजी हैं।"
       "यदि दयाभाव, माँ को परिभाषित करता है तो मेरे पिताजी उस परिभाषा के हिसाब से पूरी तरह मेरी माँ हैं।"
      "यदि त्याग, माँ को परिभाषित करता है तो मेरे पिताजी इस वर्ग में भी सर्वोच्च स्थान पर हैं।"
      "यदि संक्षेप में कहूँ कि प्यार, देखभाल, दयाभाव और त्याग माँ की पहचान है तो मेरे पिताजी उस पहचान पर खरे उतरते हैं और मेरे पिताजी विश्व की सबसे अच्छी माँ हैं।"
      आज मातृ दिवस पर मैं अपने पिताजी को शुभकामनाएँ दूँगी और कहूँगी कि आप संसार के सबसे अच्छे पालक हैं। बहुत गर्व से कहूँगी कि ये जो हमारे विद्यालय के परिश्रमी माली हैं, मेरे पिता हैं।"
     "मैं जानती हूँ कि मैं आज की लेखन परीक्षा में असफल हो जाऊँगी। क्योंकि मुझे माँ पर लेख लिखना था और मैंने पिता पर लिखा,पर यह बहुत ही छोटी सी क़ीमत होगी उस सब की जो मेरे पिता ने मेरे लिए किया। धन्यवाद"।
      आख़िरी शब्द पढ़ते - पढ़ते अध्यापिका का गला भर आया था और प्रधानाचार्या के कार्यालय में शांति छा गयी थी।
      इस शांति में केवल गंगादास के सिसकने की आवाज़ सुनाई दे रही थी। बग़ीचे में धूप की गर्मी उसकी कमीज़ को गीला न कर सकी पर उस पेपर पर बिटिया के लिखे शब्दों ने उस कमीज़ को पिता के आँसुओं से गीला कर दिया था। वह केवल हाथ जोड़ कर वहाँ खड़ा था।
      उसने उस पेपर को अध्यापिका से लिया और अपने हृदय से लगाया और रो पड़ा।
      प्रधानाचार्या ने खड़े होकर उसे एक कुर्सी पर बैठाया और एक गिलास पानी दिया तथा कहा, "गंगादास तुम्हारी बिटिया को इस लेख के लिए पूरे 10/10 नम्बर दिए गए है। यह लेख मेरे अब तक के पूरे विद्यालय जीवन का सबसे अच्छा मातृ दिवस का लेख है। हम कल मातृ दिवस अपने विद्यालय में बड़े ज़ोर - शोर से मना रहे हैं। इस दिवस पर विद्यालय एक बहुत बड़ा कार्यक्रम आयोजित करने जा रहा है। विद्यालय की प्रबंधक कमेटी ने आपको इस कार्यक्रम का मुख्य अतिथि बनाने का निर्णय लिया है। यह सम्मान होगा उस प्यार, देखभाल, दयाभाव और त्याग का जो एक आदमी अपने बच्चे के पालन के लिए कर सकता है। यह सिद्ध करता है कि आपको एक औरत होना आवश्यक नहीं है एक पालक बनने के लिए। साथ ही यह अनुशंषा करता है उस विश्वाश का जो विश्वास आपकी बेटी ने आप पर दिखाया। हमें गर्व है कि संसार का सबसे अच्छा पिता हमारे विद्यालय में पढ़ने वाली बच्ची का पिता है जैसा कि आपकी बिटिया ने अपने लेख में लिखा। गंगादास हमें गर्व है कि आप एक माली हैं और सच्चे अर्थों में माली की तरह न केवल विद्यालय के बग़ीचे के फूलों की देखभाल की बल्कि अपने इस घर के फूल को भी सदा ख़ुशबूदार बनाकर रखा जिसकी ख़ुशबू से हमारा विद्यालय महक उठा। तो क्या आप हमारे विद्यालय के इस मातृ दिवस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बनेंगे?"
      रो पड़ा गंगादास और दौड़ कर बिटिया की कक्षा के बाहर से आँसू भरी आँखों से निहारता रहा , अपनी प्यारी बिटिया को।

संसार की समस्त प्यारी - प्यारी बेटियों के पालकों को समर्पित।

झाला मन्ना पेनोरमा

विश्व प्रसिद्ध हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप की रक्षा करने वाले झाला बीदा जो कि झाला मानसिंह के नाम से प्रसिद्ध हैं।
झाला मानसिंह की याद में राजस्थान की तत्कालिक मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया द्वारा बड़ी सादड़ी के लिए झाला  मन्ना पेनोरमा की सौगात दी गई हैं।
बड़ी सादड़ी में झाला मन्ना का पेनोरमा बड़ी सादड़ी बस स्टेंड से लगभग आधा किलोमीटर दूर झाला मंगरी पर निमार्णाधीन हैं। झाला मंगरी राणा प्रताप के साथ युद्ध में अपनी वीरता दिखाने वाले गाड़ियां लौहार  नामक जाति का निवास स्थल हैं। ये वहीं गाडियां लौहार हैं। जो महाराणा प्रताप के  मेवाड़ क्षैत्र को पुनः नहीं जीत जाने तक चित्तौड़गढ़ में प्रवेश नहीं करने एंव एक स्थान पर नहीं ठहरकर घुमक्कड़ जीवन व्यतीत करने एंव शाम के बाद घर में दिया नहीं जलाने के लिए जानी जाती हैं। ये जाति स्वंय को महाराणा प्रताप के वीर सैनिक मानते हैं ‌। ये कद काठी में काफी सुडौल होते हैं। हालांकि आजकल सरकारी प्रयासों से इनके जीवन में बहुत परिवर्तन आया है।

  • इसी झाला मंगरी के ठीक पास में झाला मन्ना का पेनोरमा का काम प्रगति पर है। यह पेनोरमा झाला मानसिंह के बलिदान को जनता के दिलों में जीवंत करने का  काम करेगा। लोग झाला मानसिंह के इतिहास में  दिए गए योगदान को याद कर स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर सकेंगे।
  • इस पेनोरमा में झाला मानसिंह से जुड़ी यादें  प्रदर्शित की जाएगी।
  •  बाहर की ओर स्वंय झाला मानसिंह की मूर्ति स्थापित की जा चूका है। जो अपने आप में अनोखा दृश्य उपस्थित कर रही हैं।
  • इसके पास ही उद्यान का विकास किया जाएगा। जिससे इसकी सुन्दरता को बढ़ा सकें। 

Thursday, 4 April 2019

बड़ी सादड़ी राम रावण मेला

 बडीसादडी राम रावण मेला -:
12अप्रैल से 14अप्रैल तक



 वैसे तो सम्पूर्ण भारत में शारदीय नवरात्र के दौरान राम रावण मेलें लगते हैं। लेकिन बड़ी सादड़ी का मेला सबसे अलग समय अर्थात चैत्र मास में सम्पन्न होता है।
बड़ी सादड़ी राम रावण मेला चैत्र मास में ही आयोजित किया जाता है। इसके पीछे भी अनेक कारण हैं। जिनमें से एक कारण यह माना जाता है।कि यह समय फसल कटाई का समय होता है। जिससे लोगों के घर में आमदनी होती हैं। तथा फ़सल कट जाने के कारण सभी लोग अपने अपने काम से निवृत भी होते हैं। इस कारण बड़ी सादड़ी राम रावण के मेलें का आयोजन चैत्र मास में किया जाता है।
बड़ी सादड़ी राम रावण मेलें का सबसे आकर्षक रावण का पुतला दहन कार्यक्रम होता है। जिसमें असंख्य भीड़ जुटती है। नगर पालिका बड़ीसादड़ी द्वारा आयोजित इस मेलें में कवि सम्मेलन रंगारंग कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।
इसके अलावा बड़ी सादड़ी नगरपालिका द्वारा गणगौर उत्सव का आयोजन किया जाता है। जो मुख्यतःमहिलाओं को समर्पित त्योहार है। तथा इसमें महिलाओं के मनोरंजन के लिए विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम नगरपालिका मंडल द्वारा आयोजित किए जाते हैं।
राम रावण मेला भगवान श्री राम के रावण पर विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्य में मनाया जाता हैं। अर्थात बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में ये त्योहार मनाया जाता हैं । हम भी अपने मन से बुराईयों को दूर कर अच्छाई की और गमन करें। तथा अपने अंदर विद्यमान रावण रूपी बुराईयों का नाश करें। तभी अच्छे अर्थों मेंं इस उत्सव का महत्व बना रहेगा।
पढ़ते रहिए अपना बड़ीसादड़ी

Wednesday, 3 April 2019

नवसंवत्सर पर विशाल वाहन रैली बडीसादडी

www.barisadri.comनवसंवत्सर हिन्दू नववर्ष की शुरुआत मानी जाती हैं। आगामी 5अप्रैल को विक्रम संवत 2076 की शुरुआत होगी। इस अवसर पर बड़ीसादड़ी में पंचमुखी बालाजी सेवा संस्थान एंव हिन्दू वादी संगठनों की और से नववर्ष के शुभागमन पर विशाल वाहन रैली का आयोजन किया जा रहा है।
इस रैली की शुरुआत 5 अप्रैल को बड़ीसादड़ी रेलवे स्टेशन से होगी। तथा बडीसादडी के विभिन्न मार्गों से होती हुई  अपने सभापन स्थल की और बढे़गी।
हिंदू नववर्ष अंग्रेजी नववर्ष के ठीक विपरित हैं। अग्रेंजी नववर्ष के दौरान प्रकृति में किसी भी प्रकार का बदलाव नहींं होता हैं। 
जबकि हिन्दू नववर्ष के आगमन के साथ प्रकृति में हर ओर
नये नये परिवर्तन परिलक्षित होते हैं।
प्रकृति में हर और अनोखी छटा देखने को मिलती हैं।
नीम के वृक्ष पर नई नई कपोलों का आगमन होता हैं। जिससें सम्पूर्ण वृक्ष की छटा देखते ही बनती हैं। 
इसी कारण नववर्ष पर  नीम की नई कपोलों के साथ मिश्री बांटीं जाती हैं। जिससे प्रत्येक व्यक्ति का जीवन नीम की कपोलों के समान कुछ कड़वा एंव मिश्री के समान कुछ मिठा बना रहें। 
हम सभी यह कामना करते हैं।कि  हिंदू नववर्ष हम सभी के लिए मंगलमय हो तथा वह सभी देश वासियों के  जीवन में खुशियों का संचार करने वाला हों।

*इस परिप्रेक्ष्य मे मैं आप  सब के समक्ष राष्ट्रकवि श्रद्धेय रामधारी सिंह " दिनकर " जी की कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ ।*

_*ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं*_
_*है अपना ये त्यौहार नहीं*_
_*है अपनी ये तो रीत नहीं*_
_*है अपना ये व्यवहार नहीं*_
_*धरा ठिठुरती है सर्दी से*_
_*आकाश में कोहरा गहरा है*_
_*बाग़ बाज़ारों की सरहद पर*_
_*सर्द हवा का पहरा है*_
_*सूना है प्रकृति का आँगन*_
_*कुछ रंग नहीं , उमंग नहीं*_
_*हर कोई है घर में दुबका हुआ*_
_*नव वर्ष का ये कोई ढंग नहीं*_
_*चंद मास अभी इंतज़ार करो*_
_*निज मन में तनिक विचार करो*_
_*नये साल नया कुछ हो तो सही*_
_*क्यों नक़ल में सारी अक्ल बही*_
_*उल्लास मंद है जन -मन का*_
_*आयी है अभी बहार नहीं*_
_*ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं*_
_*है अपना ये त्यौहार नहीं*_
_*ये धुंध कुहासा छंटने दो*_
_*रातों का राज्य सिमटने दो*_
_*प्रकृति का रूप निखरने दो*_
_*फागुन का रंग बिखरने दो*_
_*प्रकृति दुल्हन का रूप धार*_
_*जब स्नेह – सुधा बरसायेगी*_
_*शस्य – श्यामला धरती माता*_
_*घर -घर खुशहाली लायेगी*_
_*तब चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि*_
_*नव वर्ष मनाया जायेगा*_
_*आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर*_
_*जय गान सुनाया जायेगा*_
_*युक्ति – प्रमाण से स्वयंसिद्ध*_
_*नव वर्ष हमारा हो प्रसिद्ध*_
_*आर्यों की कीर्ति सदा -सदा*_
_*नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा*_
_*अनमोल विरासत के धनिकों को*_
_*चाहिये कोई उधार नहीं*_
_*ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं*_
_*है अपना ये त्यौहार नहीं*_
_*है अपनी ये तो रीत नहीं*_
_*है अपना ये त्यौहार नहीं*_


  • *✍🏻राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर*

किसानों के लिए निराशा का कारण बनती बड़ी सादड़ी धान मंडी

बड़ी सादड़ी धान मंडी कहने में तो किसानों के क्रय विक्रय का सहकारी केन्द्र है। लेकिन यदि आप इस मंडी का एक बार भ्रमण करलेगें। तो निश्चित रूप...